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राजनीति में बढ़ती दुष्प्रवृत्तियाँ: लोकतंत्र के भविष्य पर एक गंभीर संकट

भारतीय लोकतंत्र की नींव सत्य, अहिंसा, जनसेवा और पारदर्शिता जैसे मूल्यों पर रखी गई थी। स्वतंत्रता संग्राम के नायकों ने राजनीति को “लोक सेवा” का माध्यम माना, न कि व्यक्तिगत लाभ और सत्ता की भूख का साधन। लेकिन वर्तमान समय में राजनीति का जो रूप हमारे सामने है, वह कहीं न कहीं इन आदर्शों से भटका हुआ नजर आता है। आज राजनीति में नैतिकता का पतन, स्वार्थ, भ्रष्टाचार, जातिवाद, धनबल, और बाहुबल जैसी दुष्प्रवृत्तियाँ आम होती जा रही हैं, जो न केवल लोकतंत्र को आहत कर रही हैं, बल्कि समाज की एकता और प्रगति के लिए भी खतरा बन गई हैं।

राजनीति का उद्देश्य और आज की सच्चाई
राजनीति का उद्देश्य जनता की सेवा, राष्ट्र के विकास, और जनकल्याण के कार्यक्रमों का क्रियान्वयन होना चाहिए। लेकिन आज के अधिकांश राजनेता केवल सत्ता प्राप्ति और उसके सुख भोगने तक सीमित हो गए हैं। चुनाव आते ही विकास की बातें होती हैं, लेकिन जैसे ही सत्ता हाथ में आती है, जनसेवा की बातें बिसरा दी जाती हैं। आजकल चुनाव प्रचार में वादों की बौछार होती है, लेकिन पांच वर्षों में उन वादों का क्या होता है, इसका कोई लेखा-जोखा जनता को नहीं दिया जाता।

चुनावी राजनीति में पैसे और बाहुबल का बोलबाला
आज चुनाव एक विचारों की लड़ाई कम और धनबल की प्रतियोगिता अधिक बन चुका है। करोड़ों रुपये खर्च कर वोट खरीदे जाते हैं। चुनाव आयोग की सीमाएं तय होने के बावजूद भी पैसे का ऐसा खुला खेल होता है, मानो यह कोई व्यापारिक निवेश हो। कुछ क्षेत्रीय नेताओं द्वारा गुंडागर्दी और बाहुबल का प्रयोग करके डर का माहौल बनाना आम बात हो गई है। इससे ईमानदार, योग्य, और विचारशील लोग राजनीति से कटते जा रहे हैं।

लोकतांत्रिक संस्थाओं पर दबाव और दुरुपयोग
आज हम देख रहे हैं कि कई बार सरकारें सत्ता में आने के बाद अपने विरोधियों को परेशान करने के लिए सीबीआई, ईडी, इनकम टैक्स जैसे संस्थानों का दुरुपयोग करती हैं। विपक्ष की आवाज को दबाने के लिए जांच एजेंसियों का डर दिखाया जाता है, जिससे लोकतंत्र की आत्मा – “मतभेदों का सम्मान” – घायल हो जाती है।

इसके साथ ही, मीडिया का एक बड़ा हिस्सा भी सत्ता के दबाव में आ गया है। पत्रकारिता, जो लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कही जाती है, आज TRP, मुनाफे और राजनीतिक हितों में उलझती नजर आ रही है। सच्चाई दिखाने वाले पत्रकारों को या तो नजरअंदाज किया जाता है या फिर उन पर मामले दर्ज कर दिए जाते हैं।

जनभावनाओं से खेल और धार्मिक ध्रुवीकरण
आज की राजनीति में धर्म, जाति, क्षेत्र और भाषा के नाम पर जनता को बांटने की साजिशें की जाती हैं। चुनाव से पहले कुछ पार्टियां ऐसे मुद्दे उछालती हैं, जिनसे लोगों की भावनाएं भड़कें और वोटों का ध्रुवीकरण हो। इससे समाज में द्वेष फैलता है और सद्भावना की भावना समाप्त होती है। कई बार, धार्मिक स्थलों का भी राजनीतिक लाभ के लिए उपयोग किया जाता है।

    आदर्श नेताओं की कमी
    आज हम यदि इतिहास की ओर देखें, तो महात्मा गांधी, लाल बहादुर शास्त्री, डॉ. राममनोहर लोहिया, डॉ. अंबेडकर जैसे नेता राजनीति को एक मिशन की तरह निभाते थे। वे गरीबों की आवाज थे, और उनका जीवन सादगी, ईमानदारी और सेवा से परिपूर्ण था। आज ऐसी सोच वाले नेता बहुत कम बचे हैं। अधिकतर नेता केवल सत्ता की राजनीति में व्यस्त हैं।

    युवा पीढ़ी में राजनीति के प्रति अरुचि
    राजनीति में बढ़ती गंदगी का असर यह हुआ है कि पढ़े-लिखे, समझदार और नैतिक युवाओं का इस क्षेत्र से विश्वास उठ गया है। वे इसे भ्रष्ट और बेईमानी से भरा हुआ मानते हैं। यही कारण है कि योग्य युवा राजनीति में भाग लेने से कतराते हैं, जिससे स्थिति और खराब होती जा रही है।

    समाधान क्या है?
    यदि हमें राजनीति को स्वच्छ बनाना है, तो कुछ गंभीर कदम उठाने होंगे:

    चुनावी सुधार: धनबल और बाहुबल को पूरी तरह से खत्म करने के लिए कठोर कानून लागू होने चाहिए। राजनीतिक दलों के फंडिंग का पूरा विवरण सार्वजनिक हो।
    राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र: अधिकतर पार्टियां आज परिवारवाद और तानाशाही से ग्रस्त हैं। एक ही परिवार के लोग शीर्ष पदों पर रहते हैं। इससे योग्य कार्यकर्ता आगे नहीं बढ़ पाते।
    जनता की जागरूकता: मतदाताओं को शिक्षित और जागरूक बनाना जरूरी है। उन्हें समझना होगा कि वोट एक जिम्मेदारी है, न कि सौदेबाजी का औजार।
    शिक्षा प्रणाली में राजनीतिक साक्षरता: विद्यालयों और कॉलेजों में लोकतंत्र, राजनीति की मर्यादाएं और नागरिक जिम्मेदारियों की शिक्षा दी जाए।
    ईमानदार नेताओं को समर्थन: जब तक जनता ऐसे नेताओं को वोट नहीं देगी जो सच्चे हैं, तब तक राजनीति नहीं बदलेगी।

    राजनीति किसी देश के भविष्य की दिशा तय करती है। अगर यह दिशा भ्रष्ट और स्वार्थी लोगों के हाथ में चली जाए, तो देश का पतन निश्चित है। आज आवश्यकता है कि हम सब मिलकर राजनीति को फिर से ‘लोक सेवा’ का माध्यम बनाएं। हमें वैसा ही भारत बनाना होगा, जिसकी कल्पना स्वतंत्रता सेनानियों ने की थी – जहां सत्ता का अर्थ सेवा हो, और राजनीति एक ईमानदार प्रयास।

    समय आ गया है जब जनता को अपने अधिकारों और कर्तव्यों का ज्ञान होना चाहिए। उन्हें यह समझना होगा कि उनका एक वोट किस हद तक देश की दिशा बदल सकता है। यदि हम आज नहीं जागे, तो कल बहुत देर हो जाएगी।

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