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25 जून 1989 की सुबह बन गई थी ‘काल’, पढ़ कर कांप उठेगी आपकी भी रूह

लोक नायक संवाद/संजीव अरोड़ा

मोगा-25 जून, 1989 का दिन मोगा शहर के इतिहास में एक मनहूस दिन है, जिसको कभी नहीं भुलाया जा सकता। 25 जून, 1989 को हुए हमले ने क्षेत्रवासियों को अंदर से हिलाकर रख दिया। सुबह का समय था और हर तरफ चहल-पहल हो रही थी कि अचानक चारों तरफ मातम छा गया। हर आंख नम थी, आंखों से अश्रु का प्रवाह नहीं थम रहा था, दिल द्रवित था। घटना के प्रत्यक्षदर्शी आज भी उस लम्हे को याद कर सहम जाते हैं।

मोगा में जब भी 25 जून आती है तो हर मोगावासी मायूस हो जाता है। ‘तेरा वैभव अमर रहे मां, हम दिन चार रहें न रहें’ यह सिर्फ कहावत ही नहीं, बल्कि इसको आर.एस.एस. संघ के कार्यकत्र्ताओं ने अपनी हिम्मत व निडरता से पूरा कर दिखाया था। गौरतलब है कि आर.एस.एस. संघ के सेवकों ने आधुनिक भारत के इतिहास में अपने बलिदानों के अनेक पन्ने जोड़े हैं। मोगा में 25 जून को नेहरू पार्क में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस.) की शाखा पर आतंकवादी हमला हो गया और स्वयंसेवकों ने अपने प्राणों की आहुति देश के लिए दे दी।

क्या हुआ था 25 जून, 1989 को
शहीदी पार्क में रोजाना बड़ी संख्या में शहर निवासी सैर-सपाटे के लिए आते थे। वहीं दूसरी तरफ आर.एस.एस. स्वयंसेवकों की शाखा भी लगी हुई थी कि अचानक पार्क के पिछले गेट से 4 आतंकवादियों ने शाखा में स्वयंसेवकों पर गोलियां चला दीं। इस गोलीकांड में 25 लोग शहीद हो गए, वहीं आसपास के 31 लोग गंभीर घायल भी हो गए थे।
गौरतलब है कि नेहरू पार्क के इस गोलीकांड ने एक बार पूरे शहर को हिलाकर रख दिया था, लेकिन फिर भी आर.एस.एस. सेवकों ने हिम्मत नहीं छोड़ी तथा अगले ही दिन 26 जून, 1989 को फिर से शाखा लगाई। बाद में नेहरू पार्क का नाम बदलकर शहीदी पार्क कर दिया गया, जो आज देशभक्तों के लिए तीर्थ स्थान बना हुआ है।

आर.एस.एस. का झंडा उतारने के लिए कहा था आतंकवादियों ने
उस गोलीकांड के दौरान आर.एस.एस. की शाखा में मौजूद संजीव कुमार ने बताया कि आतंकवादियों ने आते ही सभा में संघ के कार्यकत्र्ताओं को आर.एस.एस. का झंडा उतारने के लिए कहा था, लेकिन मौजूद सेवकों ने ऐसा करने से साफ मना कर दिया तथा उनको रोकने का प्रयास किया था, लेकिन किसी की बात न सुनते आतंकवादियों ने अंधाधुंध फायरिंग करनी शुरू कर दी थी।

डेढ़ वर्षीय डिम्पल ने भी गंवाई थी जान
गोलीकांड उपरांत छोटे गेट से भाग रहे आतंकवादियों को वहां मौजूद एक साहसी पति-पत्नी ओम प्रकाश तथा ङ्क्षछदर कौर ने बड़े जोश से ललकारा तथा पकडऩे की कोशिश की, लेकिन ए.के. 47 के साथ हुई गोलीबारी ने उनको भी मौत की नींद सुला दिया तथा साथ ही आतंकवादियों को पकड़ते समय नजदीकी घरों के पास 2-3 बच्चों के साथ खेल रहे डेढ़ वर्षीय डिम्पल को भी मौत ने अपनी तरफ खींच लिया।

शहीद हुए व्यक्तियों के नाम
लेखराज धवन (64), बाबू राम, भगवान दास, शिव दयाल, मदन गोयल, मदन मोहन, भगवान सिंह, गजानंद, अमन कुमार, ओम प्रकाश, सतीश कुमार, केसो राम, प्रभजोत सिंह, नीरज, मनीष चौहान, जगदीश जी भगत, वेद प्रकाश पुरी, ओम प्रकाश तथा ङ्क्षछदर कौर, डिम्पल, भगवान दास, पंडित दुर्गा दत्त, प्रह्लाद राय, जगतार सिंह, कुलवंत सिंह।

10 साल के नितिन जैन ने इस तरह बचाई अपनी जान
दूसरी लाइन में बैठे नितिन जैन ने बातचीत करते बताया कि रविवार होने के कारण वह सुबह ही पार्क में चला गया। जैसे ही आतंकवादियों ने गोलियां चलाईं तो हम सारे नीचे सा़े गए, लेकिन जब आतंकवादी भाग रहे थे तो सभी ने उनको पकडऩे का प्रयास किया तथा वह भी उसे खेल समझकर दौडऩे लगा, लेकिन एक कार्यकत्र्ता ने पीछे से पकड़कर घर जाने को कहा तथा वह घर को वापस आ गया। नितिन ने कहा कि वह दिन आज भी हर पल दर्द देता है।

9 गोलियां लगने के बाद मेरा शरीर हुआ बेजान : संजीव कुमार
संजीव कुमार ने कहा कि 6 बजे संघ का विचार शुरू हुआ तो अचानक 6.25 पर सभा को संबोधित कर रहे थे कि आतंकवादियों ने आकर हमला कर दिया, हर तरफ भगदड़ मच गई। आतंकवादियों ने 9 के करीब गोलियों मारीं और मेरा शरीर बेजान हो गया था। मुझे लोगों द्वारा कैंटर में डालकर अस्पताल पहुंचाया गया।

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