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Electro Homoeopathy: एक सस्ती, प्रभावशाली लेकिन उपेक्षित चिकित्सा पद्धति — मान्यता की माँग क्यों ज़रूरी है?”

भारतवर्ष में जहाँ चिकित्सा पद्धतियों की विविधता है, वहीं Electro Homoeopathy (इलेक्ट्रो होम्योपैथी) एक ऐसी प्रणाली है, जो प्राकृतिक स्रोतों से निर्मित औषधियों द्वारा शरीर की गहराई में जाकर इलाज करती है, बिना किसी साइड इफेक्ट के। यह चिकित्सा पद्धति यूरोप से आई और अब भारत के लाखों ग्रामीणों और गरीबों के लिए आशा की किरण बन चुकी है। इसके बावजूद इसे अधिकांश राज्यों में न तो सरकारी मान्यता मिली है और न ही इसके चिकित्सकों को अधिकार, जो कि एक बड़ी चिंता का विषय है।

Electro Homoeopathy की उत्पत्ति और सिद्धांत:
Electro Homoeopathy का आविष्कार इटली के डॉक्टर काउंटर सेसिल मैथेजी (Dr. Count Cesare Mattei) ने 1865 में किया था। उन्होंने पौधों और फूलों के रसों से औषधियाँ तैयार कीं जो शरीर के lymph और blood systems पर असर डालती हैं। Electro का मतलब इसमें विद्युत नहीं, बल्कि “Vital Energy” है जो इन औषधियों में संचारित होती है।

इस पद्धति का मूल सिद्धांत है –

शरीर के आंतरिक अंगों में संतुलन बनाए रखना,
रोग के मूल कारण को खत्म करना,
बिना किसी साइड इफेक्ट के इलाज करना।
इस पद्धति में औषधियाँ मुख्य रूप से पौधों और फूलों से बनाई जाती हैं, और ये हज़ारों मरीजों पर सफलतापूर्वक आज़माई जा चुकी हैं।

Electro Homoeopathy की विशेषताएँ:

कोई साइड इफेक्ट नहीं: यह प्रणाली पूरी तरह हर्बल और प्राकृतिक है।
सस्ती चिकित्सा: ग्रामीण और गरीब वर्ग के लिए अत्यंत सुलभ है।
तेज़ असर: लक्षणों को दबाने की बजाय जड़ से इलाज करती है।
कैंसर जैसी बीमारियों में आशाजनक परिणाम: विशेष रूप से कैंसर, लिवर, किडनी और त्वचा रोगों में उपयोगी सिद्ध हुई है।
शरीर के आंतरिक अंगों को संतुलित करती है।
भारत में Electro Homoeopathy की स्थिति:
भारत में लाखों लोग इस चिकित्सा पद्धति से इलाज करवा रहे हैं। सैकड़ों डॉक्टर वर्षों से Electro Homoeopathy की सेवा में लगे हुए हैं। बहुत से शिक्षण संस्थान, औषधि निर्माण इकाइयाँ और क्लीनिक्स भी कार्यरत हैं।

लेकिन इसके बावजूद इस पद्धति को अधिकांश राज्यों में सरकारी मान्यता नहीं मिली है। केवल कुछ राज्यों में इसे सीमित स्वीकृति प्राप्त है, जैसे — पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ आदि। अधिकांश राज्य इसे न तो पहचानते हैं और न ही इसके डॉक्टरों को चिकित्सा का अधिकार देते हैं।

जब औषधियाँ और फैक्ट्रियाँ वैध हैं, तो डॉक्टर क्यों नहीं?
यहाँ एक बड़ा विरोधाभास देखने को मिलता है — जब Electro Homoeopathy की दवाएँ खुले बाज़ार में बिक रही हैं, उनकी निर्माण इकाइयाँ कार्यरत हैं, तो फिर इस चिकित्सा को मान्यता क्यों नहीं? अगर दवा वैध है तो उसे देने वाले चिकित्सक को भी तो अधिकार मिलना चाहिए।

यह सवाल सीधे तौर पर नीति-निर्माताओं से पूछा जाना चाहिए।

मान्यता न मिलने से क्या समस्याएँ हैं?

डॉक्टरों की असुरक्षा: जिन डॉक्टरों ने वर्षों तक Electro Homoeopathy का अध्ययन किया, आज वे कानूनी मान्यता के अभाव में अपनी सेवाएँ देने में असहाय हैं।
मरीजों की परेशानी: हजारों मरीजों को इस पद्धति से लाभ हो रहा है, लेकिन इसका औपचारिक ढांचा न होने से भरोसा नहीं बन पा रहा।
गैर-पेशेवर लोगों की घुसपैठ: जब कोई मानक व्यवस्था नहीं होती, तो अनधिकृत लोग इस क्षेत्र में आकर मरीजों को धोखा दे सकते हैं।
स्वास्थ्य के क्षेत्र में Electro Homoeopathy का योगदान:
Electro Homoeopathy ने खासकर गाँवों और कस्बों में जहाँ एलोपैथिक डॉक्टर उपलब्ध नहीं होते, वहाँ लोगों को एक भरोसेमंद और असरदार इलाज प्रदान किया है। ऐसे कई केस सामने आए हैं जहाँ गंभीर बीमारियों में यह प्रणाली कारगर सिद्ध हुई है।

इसके अलावा, Electro Homoeopathy के डॉक्टर सामाजिक सेवा से भी जुड़े हुए हैं — मुफ्त स्वास्थ्य शिविर लगाते हैं, गरीबों का इलाज करते हैं और जन-जागरूकता फैलाते हैं।

राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता क्यों जरूरी है?

समानता: अगर किसी राज्य में Electro Homoeopathy मान्य है और दूसरे में नहीं, तो यह एक असमान प्रणाली है।
स्वास्थ्य सेवाओं में विस्तार: इससे दूरदराज़ इलाकों में स्वास्थ्य सेवाएँ मजबूत होंगी।
रोज़गार के अवसर: यदि इसे मान्यता दी जाए, तो लाखों युवाओं को इसमें स्वरोजगार मिल सकता है।
रोगों की रोकथाम में मदद: यह प्रणाली रोग के मूल कारण को समाप्त करती है, जिससे दीर्घकालिक लाभ होता है।
Electro Homoeopathy को विरोध क्यों झेलना पड़ता है?

कई बार एलोपैथिक लॉबी इस पद्धति को समर्थन नहीं देती, क्योंकि यह सस्ती और असरदार है।
स्वास्थ्य विभाग की नीतियों में इसे शामिल नहीं किया गया है, जिससे भ्रम बना रहता है।
झूठी खबरें और अफवाहें भी इस प्रणाली की छवि को नुक़सान पहुँचाती हैं।
जनता और सरकार से अपील:
अब समय आ गया है कि Electro Homoeopathy को राष्ट्रीय स्तर पर उचित स्थान मिले। भारत सरकार और राज्य सरकारों को इस विषय पर गंभीरता से विचार करना चाहिए और इसके लिए नीति बनानी चाहिए।

Electro Homoeopathy को एक स्वतंत्र, प्रभावशाली और स्वदेशी चिकित्सा पद्धति के रूप में स्वीकार किया जाए।
इसके चिकित्सकों को कानूनी अधिकार दिए जाएँ।
इस पर रिसर्च और स्टडी को प्रोत्साहन दिया जाए।

Electro Homoeopathy कोई चमत्कार नहीं, बल्कि वैज्ञानिक और प्राकृतिक आधार पर बनी चिकित्सा पद्धति है, जो लाखों लोगों की सेवा कर रही है। अगर समय रहते इसे उचित मान्यता नहीं दी गई, तो हम एक सशक्त स्वास्थ्य विकल्प को खो देंगे।

सरकार को चाहिए कि वह इस विषय में त्वरित और सकारात्मक निर्णय लेकर Electro Homoeopathy को वह सम्मान और अधिकार दे, जिसकी वह वर्षों से हकदार हैं।

एसोसिएट एडीटर:- राजेश कोछड़

लोक नायक संवाद

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