
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) से अलग होने के अमेरिका के फ़ैसले को स्वास्थ्य विशेषज्ञ एक झटके की तरह देख रहे हैं.
उनका मानना है कि अमेरिका के पीछे हटने से डब्ल्यूएचओ की ओर से दी जाने वाली सेवाओं की गुणवत्ता पर असर होगा, जिसके लिए यह संगठन अपने बनने के साल 1948 से जाना जाता रहा है.
जन स्वास्थ्य से जुड़े हलकों में इस बात पर सहमति है कि भारत को महामारी से निपटने की तैयारियों, टीबी, एड्स, रोगाणुओं और एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस पर निगरानी समेत कई अन्य कार्यक्रमों पर ज़्यादा ख़र्च करने के लिए तैयार रहना होगा.
पब्लिक हेल्थ फ़ाउंडेशन के पूर्व प्रमुख डॉक्टर के श्रीनाथ रेड्डी जैसे जन स्वास्थ्य विशेषज्ञ अमेरिका के डब्ल्यूएचओ से बाहर निकलने को ‘चीन के लिए बड़े अवसर’ के तौर पर देखते हैं.