INTERNATIONALखास खबरदेश-विदेश
Trending

अमेरिका को पुरानी बीमारियों पर संयुक्त राष्ट्र का घोषणापत्र अस्वीकार

न्यूयॉर्क (अमेरिका), 26 सितंबर अमेरिका ने गुरुवार को पुरानी बीमारियों से निपटने और मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने संबंधी संयुक्त राष्ट्र के राजनीतिक घोषणापत्र को अस्वीकार कर दिया। ट्रंप प्रशासन का कहना है कि इसकी भाषा पर उसे आपत्ति है। संयुक्त राष्ट्र के प्रतिनिधियों से बात करते हुए स्वास्थ्य एवं मानव सेवा सचिव रॉबर्ट एफ. कैनेडी जूनियर ने कहा कि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप देश में पुरानी बीमारियों की महामारी को हल करने के लिए प्रतिबद्ध हैं, लेकिन यह घोषणापत्र “संयुक्त राष्ट्र की उचित भूमिका से आगे बढ़कर सबसे जरूरी स्वास्थ्य मुद्दों की अनदेखी करता है।”

उन्होंने विश्व स्वास्थ्य संगठन के बार-बार उल्लेख पर भी आपत्ति जताई और कहा कि जब तक इसमें “आमूल-चूल सुधार” नहीं हो जाते, तब तक यह संगठन विश्वसनीयता या नेतृत्व का दावा नहीं कर सकता। द हिल अखबार की रिपोर्ट के अनुसार, ट्रंप ने जनवरी में अपने कार्यकाल की शुरुआत में ही वैश्विक स्वास्थ्य संस्था से अमेरिका को अलग करने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी। कैनेडी ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों के संकट से निपटने के लिए एकजुट होने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि ट्रंप प्रशासन की पहली प्राथमिकता “अमेरिका को फिर से स्वस्थ बनाने” की है। कैनेडी ने कहा, “राष्ट्रपति ट्रंप अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों और उनसे जुड़ी चिकित्सीय एवं शारीरिक बीमारियों के खिलाफ वैश्विक स्तर पर प्रयासों का नेतृत्व करना चाहते हैं।” उन्होंने कहा, “हम अकेले इस महामारी को नहीं हरा सकते, लेकिन संयुक्त राष्ट्र का दृष्टिकोण गलत दिशा में है।”

संयुक्त राष्ट्र की गैर-बाध्यकारी घोषणा में 2030 तक दीर्घकालिक बीमारियों को कम करने के लिए विशिष्ट लेकिन मामूली लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं, जैसे कि तंबाकू का सेवन करने वाले 15 करोड़ लोगों की संख्या में कमी, उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करने वाले 15 करोड़ और लोगों की संख्या में वृद्धि, और मानसिक स्वास्थ्य देखभाल तक 15 करोड़ और लोगों की पहुंच। कैनेडी ने कहा कि यह घोषणापत्र विवादों से भरा हुआ है और इसमें “करों से लेकर दमनकारी प्रबंधन तक हर चीज के बारे में प्रावधान” शामिल हैं। कैनेडी ने कहा, “हम ऐसी भाषा को स्वीकार नहीं कर सकते जो विनाशकारी लैंगिक विचारधारा को बढ़ावा देती हो और न ही हम गर्भपात के संवैधानिक या अंतरराष्ट्रीय अधिकार के दावों को स्वीकार कर सकते हैं।”

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *