
लोक नायक संवाद /तरुण चोपड़ा
महंत श्री ख़ुशी राम जी मल्हनहंस कौशल गोत्रीय पाकिस्तान के जिला मुजफरगढ़ की तहसील कोट अद्दु के अंतर्गत गावं एहसान पुर में एक साधारण ब्राह्मण परिवार में रहते थे ! जो की श्री हनुमान जी के परमभक्त एवं विद्वान् ज्योतिषी थे ! जिनके पास दूर-दूर से लोग अपनी समस्याओ के समाधान के लिए आते थे ! उनके अनुयायिओं में हिन्दू ,मुसलमान ,अंग्रेज आदि काफी संख्या में थे ! जो की हर समय दीन दुखी लोगों की सेवा में लगे रहते थे ! महन्त जी कभी किसी से कोई भेंट या दान दक्षिणा आदि स्वीकार नहीं करते थे ,वह अपने परिवार की आजीविका के लिए खेती करते थे व् प्रभु भक्ति में लीन रहते थे ! श्री हनुमान जी को महन्त जी अपना इष्टदेव मानते थे , वे हमेशा जय जय सीता राम, जय जय हनुमान ! इस शब्द को हमेशा गाते रहते थे ! नाम जप करना, व्रत, उपवास, तपस्या करना ये ही उनका जीवन था ! वे बचपन से ही बहुत धीर एवं गंभीर थे ! एक बार की बात है ‘महन्त ‘ जी खेती करके रात के समय घर की और अकेले लौट रहे थे ,तो उनको अपने पीछे -पीछे किसी के चलने की आहट सुनाई दी ,उन्होंने पीछे मुड़ कर देखा तो कोई नही था ! “महन्त” जी इसे अपना भ्रम समझ कर ** जय जय सीता राम ,जय जय हनुमान ** गाते हुए घर लौट आये ! अगले दिन फिर से ये ही घटना हुईं और अब “महंत “जी कुछ परेशान हुए पर प्रभु के आसरे छोड़ कर नामजप करते हुए सो गये ! अब तीसरे दिन फिर से अपने पीछे किसी के चलने की आवाज़ आई और अब आवाज़ बहुत तेज़ और स्पष्ट सुनाई दे रही थी अब भ्रम जैसी कोई बात नही थी , महंत” जी को कुछ समझ नही आ रह था, चारों और ध्यान से देखा पर कुछ दिखाई नहीं दिया ! अब महन्त जी ने आवाज़ लगाई की कौन है **बीरा **(भाई ) तो पलट कर आवाज़ आई की जिसे तू हर रोज़ बुलाता है ! मै तेरी सेवा से बहुत प्रसन्न हूँ और जो तुम नाम धुन लगाते हो न **जय जय सीता राम जय जय हनुमान **ये सुनने के लिए ही तेरे साथ – साथ चलता हूँ ! अब महंत श्री खुशी राम जी को समझते देर न लेगी और उन्होंने दंडवत प्रणाम किया और सामने आकर दर्शन देने के लिए विनती की, तो श्री हनुमान जी बोले कलयुग में हमारे इस रूप का दर्शन कोई नही कर सकता तुम मेरे ब्राह्मण स्वरूप का ध्यान करो उसी स्वरूप में दर्शन देने का वचन दे कर चले गये ! “महन्त “जी की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा ! अब तो महन्त” जी और अधिक भक्ति में लीन रहने लगे और दिन रात नाम धुन में मस्त रहने लगे ! और श्री हनुमान जी उनको रात्रि में स्वप्न में दर्शन देने लगे लेकिन **महन्त ख़ुशी राम जी **की दर्शन की लालसा शांत नही हो रही थी और उन्होंने श्री हनुमान जी से प्रत्यक्ष दर्शन देने के लिए विनती की, कहते हैं न भगवान् भक्त के अधीन होता हैं ! भगवान् ने स्वयं ही कहा है ! “”अहं भक्त पराधीनम,””” इस प्रकार भक्ति के प्रवाह में बहते हुए कुछ काल बाद उनके मन में ब्राह्मण भोजन करवाने की इच्छा जाग्रत हुई और उन्होंने ब्राह्मण भोज करवाया और दूर दूर से ब्राह्मण पधारे ! और प्रसन्न चित होकर भक्ति का वरदान दिया!रात्रि में “महन्त जी ” के स्वप्न में श्री हनुमान ने दर्शन दिए और कहा की “खुशीराम” तुम्हारे भाव और भक्ति से ओतप्रोत यह भोज बहुत स्वादिष्ट था ! यह सुनकर “महंत खुशीराम जी” चकित रह गये और वे स्वप्न से बाहर आ गये ! प्रभु को न पहचानने के कारण अश्रुपद करने लगे ! अब “महन्त” जी दिन रात प्रभु प्रेम में मगन रहते एवं प्रभु को न पहचानने के दुःख में अविरल रोते रहते ! एक वर्ष पश्चात् जब फसल पक कर तैयार हुई ,तो फिर से ब्राह्मण भोज करवाया ! अब की बार “खुशीराम “जी पूर्ण रूप से सचेत थे। ब्राह्मण भोजन आरंभ हुआ, दूर -दूर से ब्राह्मण आ रहे थे, महन्त जी प्रेम भाव से सभी को भोजन करवा रहे थे ओर सभी में अपने प्रभु जी को खोज रहे थे ।भोजन समाप्त हुआ दक्षिणा आदि दे कर सभी ब्राह्मणों को विदा किया । पर “महन्त जी “इस सोच में में थे कि आज श्री हनुमान जी भोजन करने नहीं आये । तभी एक ब्राह्मण आया और कहा कि आज पूर्णिमा का मेरा व्रत है मुझे फलाहार करना हैं । खुशी राम जी ने उनको फल दूध आदि देकर विदा किया । ओर मंदिर में आकर श्री हनुमान जी के स्वरूप के सामने बैठ कर भोज पर ना आने की ओर दर्शन ना देने की शिकायत करते हुए रोने लगे और अश्रु धारा बहाते बहाते सो गए । रात्रि में फिर स्वप्न हुआ और हनुमान जी जी ने कहा कि हमारा भोग तो सभी धरते हैं ,पर भक्त से माँग कर खाने का आनंद कुछ ओर ही होता है । निद्रा भंग हुई और महन्त जी को अपने आप पर ग्लानि हुई कि मैं प्रभु को पहचान ना सका । और भजन में लीन हो गए । अब दिन पर दिन महंत जी सन्सार से विमुख होने लगे ओर प्रभु से मिलन की तृष्णा तीव्र होने लगी । दिन रात भजन सिमरन धीरे धीरे खाना पीना छूटने लगा ओर महन्त जी बहुत कमजोर हो गए शरीर की सुध बुध खो गयी ,उनकी पत्नी ओर पुत्र श्री निर्मल दास जी तथा अन्य शिष्य सभी उनकी हालत देखकर चिंतित रहने लगे की गुरुवर अब संसार का त्याग करने की ओर हैं ,काल चक्र चलते हुए एक वर्ष बीत गया और चैत्र मास की पूर्णिमा आ गयी, ब्राह्मण भोजन के वार्षिक भंडारे का समय आ गया, महंत जी की हालत बहुत खराब हो चुकी थी वे चारपाई पर पड़े भजन में लीन थे उनके पुत्र निर्मल दास जी और अन्य शिष्यों ने ब्राह्मण भोज एवं भंडारा करने का निश्चय किया , ब्राह्मणों को बुलाया गया पंगत बैठी ब्रह्म भोज आरम्भ हुआ ,सभी ब्राह्मणों ने भोजन किया पर एक ब्राह्मण ने भोजन नहीं किया श्री निर्मल दास जी के कारण पूछने पर उन्होंने महन्त जी से मिलने ओर उनके हाथ से भोजन करने की इच्छा जाहिर की **( क्योंकि भगवान विरह की वेदना में जल रहे अपने उस भक्त के दर्शन किये बिना भोजन कैसे कर सकते थे )** ब्राह्मण रूप धारी हनुमान को महन्त जी के पास ले जाया गया ,अपने भक्त की ये हालत देखकर लीलाधारी प्रभु** श्री हनुमान जी** की अश्रु धारा बह चली प्रभु जी ने ,महंत जी को स्पर्श कर आवाज़ लगायी तो चेतना लोटी और बोले कौन , तो प्रभु ने जवाब दिया जिसे तुमने **बीरा** कह कर प्रथम बार आवाज लगायी थी । धीरे धीरे से आधी आँख खुली और दर्शन रस धारा बह चली कांपते हाथों ने नमस्कार की मुद्रा ली और कांपते होठों से आवाज निकली,” जय बीरा जी “,प्रभु ने आशिर्वाद दिया । भक्त और भगवान की आँखों ही आँखों में बात हुई कि जब ब्राह्मण रूप धरकर सुग्रीव को श्री राम जी से मिलवाया, ये रूप धर कर विभीषण जी को प्रभु जी के चरणों में लगाया और ये ही रूप धर कर श्री भरत जी को प्रभु मिलन का संदेश सुनाया अब तुम भी छोड़ जगत को चलो प्रभु चरणन में ।ब्राह्मण रूप धरने का कर्ज चुकाना पढ़ता है।तेरे जैसे भक्तों को प्रभु श्री राम से मिलना पड़ता है।ये कहकर ब्राह्मण रूप धारी *श्री हनुमान जी *अंतर ध्यान हो गए । और स्थूल शरीर का त्याग कर महंत जी सूक्ष्म शरीर से प्रभु श्री राम जी के चरणों में विलीन हो गए ।भक्त वत्सल भगवान की जय.
